Wednesday 14 March 2012

नई पीढ़ी का गुस्सा

आजकल बच्चे अक्सर कहते हैं ‘मैं कुछ भी करुं, आपको मतलब’। ‘मां प्लीज आप मेरे मामलों में दखल मत दो’। अभिभावकों का लहजा होता है ‘आजकल तुम कोई बात नहीं सुनते, जब पापा पिटाई करेंगे तभी सुधरोगे’। ‘जो बात मना करो तुम वही करती हो, ज्यादा बिगड़ने की जरूरत नहीं है’। ये दोनों पक्ष सीधे तौर पर सवाल भी हैं और जवाब भी।


नए शोध के अनुसार जो अभिभावक अपने बच्चों को अनुशासन में नहीं ढाल पाते वो एक गुस्सैल पीढ़ी तैयार कर रहे हैं। वो लोग ज्यादा गुस्सैल और अशांत होते हैं जिनके अभिभावक हिंसक स्वभाव के होते हैं। इसके उलट वो बच्चे अच्छा व्यवहार करते हैं जिनके अभिभावक सहज और सरल व्यक्तित्व वाले होते हैं। शोध के लिए 300 परिवारों को शामिल किया गया। इसमें चार से सात साल के बच्चों और उनके अभिभावकों के व्यवहार का अध्ययन किया गया है।

नेशनल एकेडमी फॉर पेरेंटिंग रिसर्च के डायरेक्टर और प्रमुख शोधकर्ता स्टीफन स्कॉट कहते हैं कि ‘ बच्चों के साथ सख्त व्यवहार और हर बात पर रोक-टोक करने जैसे नकारात्मक पालन-पोषण से बच्चों में गैर सामाजिक व्यवहार जन्म लेता है’। अध्ययन के दौरान विशेषज्ञों ने पाया कि कुछ मध्यवर्गीय अभिभावक बच्चों की ख्वाहिशों को पूरा करने में तो कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन उनके साथ वक्त नहीं बिताते। बच्चों की परवरिश में लापरवाही भी उनके बुरे व्यवहार का कारण बन जाती है।


शोधकर्ताओं के अनुसार बच्चों के साथ बुरे व्यवहार का कारण बच्चों के खराब स्वभाव को बताना बिल्कुल गलत है। लापरवाह परवरिश की संगत से सिर्फ बच्चों का व्यवहार ही खराब नहीं होता बल्कि वो बुरी आदतों में भी पड़ जाते हैं। रिसर्च टीम की रिपोर्ट के अनुसार कम शिक्षा और आय वाली माताओं में नकारात्मक परवरिश की संभावना ज्यादा होती है।

बच्चों की जिंदगी सुधारने के लिए अच्छी परवरिश पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। चाइल्ड लिटरेसी एक्सपर्ट सू पाल्मर अपनी किताब ‘टॉक्सिक चाइल्डहुड‘ में लिखती हैं कि ‘आज के समय में बच्चे अधिकतर समय टीवी देखते हुए और अपनी इलेक्ट्रानिक दुनिया में बिताते हैं। ये वहीं समय है जिसमें कुछ साल पहले तक मां-पापा बच्चे को कहानियां सुनाते थे, उससे बातें करते थे और उसके साथ खेलते थे’। आज की व्यस्त और तकनीकी दुनिया में बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए जरूरी है उनके साथ अच्छा समय बिताना।

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