हम नाम थे शायद कि हमें
महज अल्फाज समझा
ना समझा मेरा फसाना
महज उसे एक अंदाज समझा
बेगानों मे तो बेगाना था ही मे
अपनो ने भी मझे ना खास समझा
एक फेसला समझा मझे
ना मझे हमराज समझा
एक सुखा सा दरखत समझा शियाज
ना किसी ने आशियाज समझा
ना समझा MUJHE एक सुखनवर
महज एक खामियास समझा
मेरे JAKHM का दर्द ना समझा कोई
महज उसे एक म सज समझा
ना समझा मुझे माँनजिल
महज एक दरवाज समझा
ना समझा मझे दीवान
महज एक दरवाज समझा
मझे जलाकर कहाँ बच पाये तुम भी
तुम्हे भी तो पिघला हुआ मोम समझा
अगर मुझे एक RAKH समझा
महज अल्फाज समझा
ना समझा मेरा फसाना
महज उसे एक अंदाज समझा
बेगानों मे तो बेगाना था ही मे
अपनो ने भी मझे ना खास समझा
एक फेसला समझा मझे
ना मझे हमराज समझा
एक सुखा सा दरखत समझा शियाज
ना किसी ने आशियाज समझा
ना समझा MUJHE एक सुखनवर
महज एक खामियास समझा
मेरे JAKHM का दर्द ना समझा कोई
महज उसे एक म सज समझा
ना समझा मुझे माँनजिल
महज एक दरवाज समझा
ना समझा मझे दीवान
महज एक दरवाज समझा
मझे जलाकर कहाँ बच पाये तुम भी
तुम्हे भी तो पिघला हुआ मोम समझा
अगर मुझे एक RAKH समझा
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